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Anti Semitism Australia: जब नफ़रत सरहदें लांघ जाए, पढ़ें ऑस्ट्रेलिया में यहूदी विरोध के डरावने सच की पूरी कहानी…

Anti Semitism Australia: 7 अक्तूबर 2023 का दिन दुनिया के लिए एक गहरे ज़ख़्म की तरह दर्ज हो गया, जब हमास के आतंकियों ने इजरायल में घुसकर भीषण हमला किया। इस हमले के जवाब में इजरायल ने गाजा में आतंकियों के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किया। यह संघर्ष केवल दो इलाकों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका असर अंतरराष्ट्रीय राजनीति और सामाजिक माहौल पर भी पड़ा। कई देशों में विरोध प्रदर्शन हुए और कई जगह नफ़रत की घटनाएं तेज़ हो गईं। इसी वैश्विक माहौल में (global conflict impact) के चलते ऑस्ट्रेलिया जैसे देश में भी यहूदी विरोधी भावनाएं खुलकर सामने आने लगीं।

Anti Semitism Australia
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ऑस्ट्रेलिया में बढ़ती यहूदी विरोधी घटनाएं

ऑस्ट्रेलिया लंबे समय से खुद को बहुसांस्कृतिक और सहिष्णु समाज के रूप में पेश करता रहा है, लेकिन हालिया घटनाएं इस छवि पर सवाल खड़े करती हैं। ऑस्ट्रेलियन ज्यूरी की कार्यकारी परिषद के आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ एक साल में यहूदी विरोध से जुड़ी 1,600 से अधिक घटनाएं दर्ज की गईं। लिबरल सांसद जूलियन लीसर ने चिंता जताते हुए कहा कि आज हालात ऐसे हैं कि यहूदी बच्चे स्कूल की यूनिफॉर्म पहनने से डरते हैं। सार्वजनिक रूप से अपनी पहचान जाहिर करना (rising hate crimes) उनके लिए जोखिम भरा होता जा रहा है।


यहूदी समुदाय की ऐतिहासिक मौजूदगी

ऑस्ट्रेलिया में यहूदी समुदाय का इतिहास कोई नया नहीं है। इसकी शुरुआत 1788 में हुई, जब ब्रिटिश उपनिवेश के साथ कुछ यहूदी कैदी यहां लाए गए थे। इसके बाद 19वीं सदी में यूरोप से व्यापारी, डॉक्टर और अन्य पेशेवर यहां बसने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद होलोकॉस्ट से बचे हजारों यहूदियों ने ऑस्ट्रेलिया को अपना नया घर बनाया। आज लगभग 1.2 लाख से अधिक यहूदी यहां रहते हैं और सिडनी व मेलबर्न उनकी सबसे बड़ी आबादी के केंद्र हैं, जो (Jewish community history) का अहम हिस्सा हैं।


भेदभाव था, पर हिंसा नहीं

शुरुआती दशकों में ऑस्ट्रेलिया में यहूदी विरोध मुख्य रूप से सामाजिक भेदभाव तक सीमित था। कई क्लबों, होटलों और नौकरियों में यहूदियों के लिए दरवाजे बंद थे। कुछ अखबारों और राजनीतिक समूहों ने उन्हें विदेशी या अलग समुदाय के रूप में पेश किया। यह भेदभाव हिंसक नहीं था, लेकिन मानसिक और सामाजिक स्तर पर गहरा असर डालता था। यह दौर दिखाता है कि कैसे (social discrimination) धीरे-धीरे एक पूरे समुदाय को हाशिये पर धकेल सकता है।


नाजी विचारधारा का साया

1930 के दशक में नाजी जर्मनी के प्रभाव ने ऑस्ट्रेलिया को भी अछूता नहीं छोड़ा। इस दौरान नाजी समर्थक संगठन सक्रिय हुए और यहूदियों पर मीडिया, बैंकिंग और राजनीति पर कब्जा करने जैसे आरोप लगाए गए। 1930 और 40 के दशक में यह प्रचार तेजी से फैला। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भले ही ऑस्ट्रेलिया ने होलोकॉस्ट पीड़ितों को शरण दी, लेकिन (Nazi ideology influence) की छाया पूरी तरह खत्म नहीं हुई। स्कूलों और कार्यस्थलों पर ताने और अपमान आम बात बने रहे।


21वीं सदी में बदला विरोध का स्वरूप

समय के साथ यहूदी विरोध ने नया और ज्यादा खतरनाक रूप ले लिया। 21वीं सदी में कई लोग इजरायल की नीतियों के लिए सीधे यहूदियों को जिम्मेदार ठहराने लगे। इसी सोच के चलते सिडनी और मेलबर्न में सिनेगॉग पर आगजनी, धमकियां और हमले सामने आए। यहूदी कब्रिस्तानों को नुकसान पहुंचाना और सार्वजनिक जगहों पर नफरत भरे नारे लिखना अब आम होता जा रहा है, जो (modern anti-semitism) की गंभीरता को दर्शाता है।


मानवाधिकार संगठनों की चेतावनी

ऑस्ट्रेलिया की मानवाधिकार संस्थाओं का कहना है कि यहूदी विरोधी घटनाएं बीते वर्षों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी हैं। ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि डर और असुरक्षा में जी रहे लोगों की हकीकत हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्षों की आड़ में नफरत को正 ठहराया जा रहा है। हमास का इजरायल पर हमला और उसके बाद की घटनाएं इस प्रवृत्ति का ताजा उदाहरण हैं, जिसने (human rights concern) को और गहरा कर दिया है।


आज भी जिंदा है एक कड़वी सच्चाई

ऑस्ट्रेलिया में यहूदी विरोध कोई बीते जमाने की कहानी नहीं, बल्कि आज की सच्चाई है। इतिहास, राजनीति और वैश्विक घटनाएं मिलकर इसे बार-बार हवा देती रही हैं। सवाल सिर्फ यह नहीं है कि नफरत क्यों बढ़ रही है, बल्कि यह भी है कि समाज इसे रोकने के लिए कितना गंभीर है। जब तक डर की जगह भरोसा और नफरत की जगह संवाद नहीं लेगा, तब तक (fight against hatred) अधूरा ही रहेगा।

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