Iron Man of India Junagadh: लौह इच्छाशक्ति की वो कहानी जिसने भारत को टूटने से बचाया…
Iron Man of India Junagadh: आज जब भारत के ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की पुण्यतिथि मनाई जा रही है, तो देश को जोड़ने वाले उनके अद्वितीय साहस और दूरदृष्टि की याद अपने आप ताजा हो जाती है। आज़ादी के बाद भारत केवल एक नया राष्ट्र नहीं था, बल्कि सैकड़ों रियासतों का एक अस्थिर समूह था, जिसे एक सूत्र में पिरोना सबसे बड़ी चुनौती थी। सरदार पटेल ने बिना शोर-शराबे के, लेकिन अडिग संकल्प के साथ इस असंभव से दिखने वाले कार्य को संभव किया। उनका सबसे साहसिक और निर्णायक कदम जूनागढ़ का भारत में विलय था, जिसने देश की अखंडता को स्थायी आधार दिया (Iron Man of India).

जब जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने का ऐलान हुआ
1947 में स्वतंत्रता के समय भारत में कुल 562 रियासतें थीं। अधिकतर ने समझदारी दिखाते हुए भारत में शामिल होने का फैसला किया, लेकिन गुजरात की रियासत जूनागढ़ ने देश की नींव को हिला देने वाला निर्णय लिया। 15 सितंबर 1947 को जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी। यह फैसला न केवल राजनीतिक रूप से चौंकाने वाला था, बल्कि भौगोलिक और जनसांख्यिकीय दृष्टि से भी तर्कहीन था। यह वही क्षण था जब सरदार पटेल ने इसे भारत की एकता पर सीधा हमला माना (Junagadh accession).
80 प्रतिशत हिंदू आबादी और फिर भी विवाद
जूनागढ़ की सबसे बड़ी सच्चाई यह थी कि वहां की लगभग 80 प्रतिशत आबादी हिंदू थी। इतना ही नहीं, यह रियासत पाकिस्तान की सीमा से पूरी तरह कटी हुई थी। इसके बावजूद नवाब का पाकिस्तान में जाने का फैसला जनता की भावनाओं के विपरीत था। इस निर्णय के पीछे नवाब के दीवान शाहनवाज भुट्टो की अहम भूमिका थी, जो आगे चलकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता बने। पाकिस्तान ने भी 13 सितंबर 1947 को इस विलय को स्वीकार कर विवाद को और गहरा दिया (Partition of India).
सरदार पटेल का निर्णायक हस्तक्षेप
सरदार पटेल उस समय भारत के गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री थे। उन्होंने इस संकट को केवल राजनीतिक चुनौती नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न माना। उन्होंने तुरंत जूनागढ़ के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी लागू की और आसपास के क्षेत्रों में भारतीय सेना की तैनाती कर दी। सबसे अहम बात यह थी कि उन्होंने जनता की आवाज़ को ताकत बनाया। उनके समर्थन से जूनागढ़ में ‘आरजी हुकूमत’ नामक अस्थायी सरकार बनी और जनविद्रोह ने जोर पकड़ लिया (National integration).
डर के साए में भागा नवाब
जनता के बढ़ते आक्रोश और भारत की सख्त नीति से नवाब महाबत खान की स्थिति कमजोर होती चली गई। 25 अक्टूबर 1947 की रात वह घबराकर अपने परिवार और प्रिय कुत्तों के साथ कराची भाग गया। यह दृश्य इतिहास में सत्ता की कायरता और जनता की ताकत का प्रतीक बन गया। नवाब के भागते ही जूनागढ़ में प्रशासनिक शून्यता पैदा हो गई, जिसे भारत ने बेहद संयम और जिम्मेदारी से संभाला (Political crisis).
भारतीय सेना की एंट्री और ऐतिहासिक जनमत संग्रह
9 नवंबर 1947 को भारतीय सेना ने जूनागढ़ का नियंत्रण संभाल लिया। इसके बाद लोकतांत्रिक मर्यादा का पालन करते हुए फरवरी 1948 में जनमत संग्रह कराया गया। यह जनमत संग्रह भारत के इतिहास में एक मिसाल बना, क्योंकि इसमें 99.5 प्रतिशत लोगों ने भारत में शामिल होने के पक्ष में मतदान किया। जनता की इस स्पष्ट राय ने सरदार पटेल की नीति और निर्णय को पूरी तरह सही साबित कर दिया (Plebiscite).
जूनागढ़ से आगे भी सरदार पटेल की विजय
जूनागढ़ की सफलता सरदार पटेल के लिए केवल एक शुरुआत थी। हैदराबाद जैसी बड़ी और जटिल रियासतों का विलय भी उनकी रणनीति और दृढ़ता का परिणाम था। उन्होंने संवाद, दबाव और आवश्यकता पड़ने पर शक्ति—तीनों का संतुलित उपयोग किया। हाल ही में उनकी 150वीं जयंती पर गुजरात में जूनागढ़ से शुरू हुआ एकता मार्च, इसी विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास है (Unification of India).
इतिहास का वो सबक जो आज भी प्रासंगिक है
सरदार पटेल ने यह साबित कर दिया कि राष्ट्र निर्माण केवल भाषणों से नहीं, बल्कि साहसिक निर्णयों से होता है। जूनागढ़ का विलय भारत के लोकतांत्रिक और एकीकृत स्वरूप की जीत थी। आज जब देश विविध चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब सरदार पटेल की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि मजबूत इरादे और जनता का विश्वास किसी भी संकट को अवसर में बदल सकता है



