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Pakistan Sanskrit Course: अब सरहद पार गूंजेगी संस्कृत! पाकिस्तान के शिक्षण संस्थानों में पहली बार शुरू हुई गीता-महाभारत की पढ़ाई

Pakistan Sanskrit Course : भारत और पाकिस्तान भले ही आज राजनीतिक रूप से एक-दूसरे से काफी दूर खड़े नजर आते हों, लेकिन दोनों देशों की सांस्कृतिक जड़ें अब भी एक ही जमीन से जुड़ी हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर तनाव और बयानबाज़ी के बावजूद साझा विरासत की सच्चाई (Reality) को नकारा नहीं जा सकता। इसी कड़ी में पाकिस्तान से एक ऐतिहासिक खबर सामने आई है, जहां पहली बार किसी विश्वविद्यालय में संस्कृत की पढ़ाई शुरू की गई है। यह कदम केवल शिक्षा नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया की सांस्कृतिक आत्मा को समझने की दिशा में बड़ा प्रयास माना जा रहा है।

Pakistan Sanskrit Course
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पाकिस्तान में संस्कृत की शुरुआत: ऐतिहासिक मोड़ (Turning Point)

बंटवारे के बाद यह पहला मौका है जब पाकिस्तान के किसी विश्वविद्यालय में संस्कृत को औपचारिक कोर्स के रूप में शामिल किया गया है। लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) ने पारंपरिक भाषाओं के चार-क्रेडिट कोर्स शुरू किए हैं, जिनमें संस्कृत भी शामिल है। यह फैसला शिक्षा जगत में एक क्रांतिकारी (Revolutionary) बदलाव की तरह देखा जा रहा है, जिसने कई धारणाओं को तोड़ दिया है।


डॉ. शाहिद रशीद का प्रयास: ज्ञान की लगन (Dedication)

इस पहल के पीछे फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज के समाजशास्त्र के असोसिएट प्रोफेसर डॉ. शाहिद रशीद की अहम भूमिका है। वह स्वयं संस्कृत के विद्वान हैं और मानते हैं कि पारंपरिक भाषाओं में ज्ञान का अथाह सागर छिपा है। उन्होंने बताया कि अरबी और फारसी पढ़ने के बाद उन्होंने संस्कृत सीखना शुरू किया, जिसमें व्याकरण समझने में उन्हें एक साल तक लगा। यह उनकी मेहनत (Hard Work) और सीखने की जिज्ञासा को दर्शाता है।


छात्रों में बढ़ती रुचि: सकारात्मक संकेत (Signal)

डॉ. रशीद ने बताया कि पहले तीन महीने की वीकेंड वर्कशॉप के रूप में संस्कृत का कोर्स चलाया गया था। इसके बाद छात्रों में संस्कृत और भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी रुचि देखने को मिली। यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि युवा पीढ़ी सीमाओं से परे जाकर ज्ञान को अपनाने के लिए तैयार है। यह शिक्षा की शक्ति (Power) को साबित करता है।


पाकिस्तान में संस्कृत की विरासत: छुपा हुआ खजाना (Treasure)

एलयूएमएस के गुरमानी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. अली उस्मान कासिम ने कहा कि पाकिस्तान के इलाके में संस्कृत पर ऐतिहासिक रूप से काफी काम हुआ है। पंजाब यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में आज भी संस्कृत की दुर्लभ पुस्तकें, ग्रंथ और यहां तक कि पत्तों पर लिखे हस्तलेख मौजूद हैं। इनका उपयोग ज्यादातर विदेशी शोधकर्ता करते हैं, जबकि स्थानीय स्तर पर इन पर ध्यान नहीं दिया गया। यह सांस्कृतिक उपेक्षा (Neglect) का उदाहरण है।


“ये हमारी भी भाषा है”: पहचान का दावा (Claim)

डॉ. शाहिद रशीद का मानना है कि संस्कृत को केवल हिंदू धार्मिक ग्रंथों की भाषा मानना एक सीमित सोच है। उन्होंने कहा कि संस्कृत पूरे क्षेत्र की साझा भाषा रही है। संस्कृत व्याकरण के रचयिता पाणिनि का जन्म भी इसी भूभाग में हुआ था। सिंधु सभ्यता के दौर में यहां व्यापक लेखन हुआ। संस्कृत को उन्होंने एक पर्वत की तरह बताया, जिसमें अनगिनत खजाने छिपे हैं। यह भाषा किसी एक धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि सभ्यता की धरोहर (Heritage) है।


भाषा से बनेगा दक्षिण एशिया का सेतु (Bridge)

डॉ. रशीद ने एक दिलचस्प कल्पना साझा की। उन्होंने कहा कि अगर सीमा के दोनों ओर संस्कृत, अरबी और फारसी जैसी भाषाओं पर काम हो, तो एक सांस्कृतिक सेतु बन सकता है। भारत के हिंदू और सिख अरबी-फारसी सीखें और पाकिस्तान के मुसलमान संस्कृत पढ़ें। इससे क्षेत्र में संवाद और समझ की संभावना (Possibility) बढ़ेगी। भाषा की कोई सीमा नहीं होती, यह विचार इस पहल की आत्मा है।


व्यक्तिगत जुड़ाव: साझा इतिहास की झलक (Glimpse)

डॉ. रशीद ने अपने पारिवारिक इतिहास का जिक्र करते हुए बताया कि उनके पूर्वज हरियाणा के करनाल में रहते थे, जबकि उनकी मां उत्तर प्रदेश के शेखपुरा से हैं। उन्होंने देवनागरी लिपि को बेहद आकर्षक बताया। यह व्यक्तिगत अनुभव इस बात का प्रमाण है कि सीमाएं बदली हैं, लेकिन सांस्कृतिक संबंध (Connection) अब भी जीवित हैं।


गीता और महाभारत की पढ़ाई: भविष्य की योजना (Plan)

डॉ. अली उस्मान कासिम ने बताया कि विश्वविद्यालय भविष्य में महाभारत और भगवद्गीता पर भी कोर्स शुरू करने की योजना बना रहा है। उनका मानना है कि अगले 10–15 वर्षों में पाकिस्तान से भी इन ग्रंथों के विद्वान निकल सकते हैं। यह पहल न केवल शिक्षा, बल्कि सांस्कृतिक समझ (Understanding) को भी गहरा करेगी।

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