बढ़ते प्रदूषण के बीच एम्स ने एक शोध किया है। इस शोध के तहत एक खास बेल्ट की निर्माण किया गया है, जो ये बताने में मददगार साबित होगी कि अस्थमा ग्रस्त बच्चों पर इस प्रदूषण के संपर्क में आने से क्या असर पड़ रहा है। ने इसके लिए बहु-केंद्र अध्ययन प्रारम्भ किया। इसके लिए वो बच्चों को दिन में प्रदूषण के स्तर क मापने व अस्थमाग्रस्त बच्चों के असर को जानने के लिए एक बेल्ट दी जाएगी, जिसे दिन के दौरान पहनकर बाहर हो रहे प्रदूषण को मॉनिटर किया जाएगा। ये शोध विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग व ब्रिटेन के मेडिकल रिसर्च सेंटर द्वारा वित्त पोषित था।
इस शोध के तहत चिकित्सा संस्थान बच्चों को बेल्ट के रूप में एक पहनने योग्य सेंसर देगा, जो स्कूल, घर या बस में यात्रा करते समय वायु प्रदूषण के स्तर को लगातार मापेगा। एक भारतीय एक्सप्रेस में छपी समाचार के मुताबिक, इस शोध की आरंभ करीब छह महीने पहले हुई थी, इसके लिए अब तक 10-15 विद्यार्थियों की पहचान की है।
एम्स के निदेशक व अध्ययन के मुख्य जांचकर्ता चिकित्सक रणदीप गुलेरिया ने बताया कि ये मशीन निरंतर अस्थमा वाले बच्चों के सेहत पर एक्सपोजर की डिग्री व इसके असर की पहचान करेगी। इस असली डेटा से ये खुलासा होगा कि एक आदमी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से कितना प्रभावित होता है। उन्होंने बताया कि इस शोध के तहत एक बटन की तरह एक उपकरण भी एक बच्चे की छाती पर रखा जाएगा, जो हमें समग्र सेहत की स्थिति के बारे में जानकारी देगा।
सेंसर को गुप्त रखा जाएगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, मशीन द्वारा दर्ज किए गए डेटा को देखने में कोई भी सक्षम नहीं होगा। शोधकर्ताओं ने ये विचार किया है कि एक बच्चे पर एक सप्ताह तक इसका इस्तेमाल करके देखा जाएगा व वर्ष में दो से तीन बार तक इस तरह की इस्तेमाल किया जाएगा।
मशीन में एक अंतर्निर्मित तंत्र होगा जो, डेटा की निगरानी में मदद करेगा व डॉक्टरों को प्रवृत्ति की पहचान करने में मदद करने के लिए असली समय प्रदूषण की जानकारी लगातार दर्ज करेगा।
संयुक्त रूप से ये शोध आईआईटी दिल्ली, लंदन के इंपीरियल कॉलेज, व चेन्नई के श्री रामचंद्र विश्वविद्यालय के योगदान से आयोजित किया जा रहा है।
एम्स के पल्मोनोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ करण मदान ने बताया कि इसके लिए वो उन बच्चों की पहचान कर रहे हैं कि अस्थमा से ग्रस्ति हैं व उपचार के लिए उनके पास आते हैं। बच्चों की पहचान के बाद वो इस विषय में अधिकारियों से संपर्क करेंगे व बच्चों के माता-पिता व स्कूल की सहमित लेकर बच्चे को एक सेंसर दिया जाएगा, जिसे एक सप्ताहतक पहनाया जाएगा।
विशेषज्ञों ने कहना है कि अध्ययन इनडोर व आउटडोर प्रदूषण के बीच एक लिंक भी स्थापित करेगा। डॉ। मदान ने बोला कि अध्ययन हमें यह जानने में मदद करेगा कि कैसे प्रदूषण के बदलते स्तर से बच्चे का सेहत प्रभावित होता है।
वहीं, पर्यावरणविदों ने अध्ययन को सराहा है। अनुसंधान व वकालत, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के कार्यकारी निदेशक अनुमिता राय चौधरी ने बोला कि ऐसी जानकारी ले पाना बेहद मूल्यवान होगा। उन्होंने बोला कि डेटा फिर से ये पुष्टि करेगा कि वायु प्रदूषण श्वसन रोगों के इतिहास वाले लोगों की स्थिति को कैसे बढ़ाता है।