
न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देना भ्रष्ट आचरण है या नहीं, यह सिद्धांत की बात है। यह संसद का काम है कि वह कानून बनाकर इसे भ्रष्ट आचरण करार दे। हम विधायिका को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते। पीठ दरअसल भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुहार की गई थी कि चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने को ‘भ्रष्ट आचरण’ करार दिया जाए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राणा मुखर्जी ने पीठ से कहा कि चुनावी हलफनामे में उम्मीदवारों द्वारा गलत जानकारी दी जाती है, जिससे चुनाव की पवित्रता कम होती है। फिलहाल ऐसा करना जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा-125ए के तहत आता है। ऐसा करना अयोग्यता का आधार होता है और इसमें अधिकतम छह महीने की सजा का प्रावधान है। मुखर्जी ने कहा कि जरूरत इस बात है कि चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने को ‘भ्रष्ट आचरण’(धारा-123) में शामिल किया जाए। इसके तहत छह वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। इस पर पीठ ने कहा कि आप चाहते हैं कि हम संसद को इस संबंध में कानून बनाने का निर्देश दें, लेकिन हम आखिर ऐसा कैसे सकते है?
जवाब में मुखर्जी ने विशाखा गाइडलाइंस का उदाहरण देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ऐसा पहले भी कर चुकी है। इस पर पीठ ने कहा कि हम नैतिकता के आधार पर आपकी बात से सहमत हो सकते हैं लेकिन हम इस तरह का कोई निर्देश नहीं दे सकते। हमें कहीं न कहीं अपनी सीमा तो तय करनी ही होगी।
इस पर मुखर्जी ने कहा कि छह महीने बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनाव में पवित्रता बनाए रखने को शीर्ष अदालत को इस पर दखल देना चाहिए। पीठ इस याचिका पर विचार करने के पक्ष में नहीं थी, लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से बार-बार आग्रह करने के बाद पीठ ने इस याचिका को वर्ष 2011 से लंबित एक अन्य मामले के साथ जोड़ दिया।