हरियाणा में सामाजिक प्रतिष्ठा की शान माने जाने वाले हुक्के की जगह अब म्याऊं-म्याऊं (चीन से आ रहा), स्नेक बाइट व छिपकली का नशा युवा वर्ग पर हावी है। इसकी लत युवाओं में लगातार बढ़ती जा रही है। पीजीआईएमएस के स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के पास अभी इस प्रकार का नशा करने वाले युवाओं का सही आंकड़ा तो नहीं, लेकिन जितने केस सामने आए हैं वह समाज के लिए खतरे की घंटी हैं।

पीजीआईएमएस के नशा मुक्ति केंद्र में पिछले छह सालों के दौरान जो तस्वीरें सामने आई हैं, वह काफी डराने वाली हैं। नशे की लत से छुटकारा पाने के लिए यहां हर साल मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। प्रदेश में शराब, सिगरेट, बीड़ी-हुक्का जैसा नशा तो बहुत पीछे छूट गया है। युवा हेरोइन, स्मैक, चरस, गांजा जैसी नशीली चीजों का प्रयोग कर ही रहे थे कि अब म्याऊं-म्याऊं, स्नेक बाइट व छिपकली का नशा आम हो रहा है।
काउंसिलिंग के दौरान बातचीत में सामने आया है कि यह नशा अन्य नशों से सस्ता है, जबकि डॉक्टर इसे जीवन के लिए अत्यधिक घातक मानते हैं। इसका प्रयोग करने वाले को बचाना बहुत मुश्किल हो जाता है। यह जानलेवा नशा हमारे युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रहा है।
इस नशे की चेन को तोड़ने में पुलिस भी नाकाम है, क्योंकि शहर तो दूर गांवों की गली में इस प्रकार का नशा अपनी पहुंच बना चुका है। साल 2017 में हेरोइन, स्मैक, अफीम आदि का सेवन करने वाले 339 केस उपचार के लिए आए, जबकि 2018 में जून तक इसकी संख्या 469 पार कर चुकी है। 2012 में ऐसा नशा करने वालों की संख्या 190, 2013 में 163 हो गई।
इसके बाद इसका आंकड़ा बढ़ता चला गया। 2014 में 209, 2015 में 326 और 2016 में 397 और 2017 में 339 केस सामने आए। विभाग की मानें तो स्नेक बाइट, म्याऊं म्याऊं और छिपकली का नशा करने वाले केस भी सामने आए हैं, जोकि मेट्रो सिटी की रेव पार्टी में ही देखने को मिलते हैं।
जब तक सप्लाई सिस्टम नहीं टूटेगा तब तक प्रदेश को ड्रग्स से नहीं बचा सकते- डॉ. राजीव गुप्ता
पीजीआईएमएस रोहतक के निदेशक डॉ. राजीव गुप्ता का कहना है कि ऐसा कोई नशा नहीं है, जो हरियाणा में नहीं हो रहा। जब तक सप्लाई सिस्टम नहीं टूटेगा तब तक प्रदेश को ड्रग्स से नहीं बचाया जा सकता। हम उन लोगों की काउंसिलिंग कर उन्हें मुख्य धारा में ला सकते हैं, जो हमारे पास आते हैं। लेकिन जो तबका हमारे पास नहीं आता, उसका क्या करें। कई नशे के कंपोनेंट ऐसे होते हैं जो अन्य नशों से मिलते हैं, लेकिन पकड़ में आने से बचने के लिए उनका नाम बदल लिया जाता है।
जितना खतरनाक नशा, विधि भी उतनी खतरनाक
म्याऊं-म्याऊं नशा स्मैक की तरह प्रयोग होता है और चीन से आता है। जबकि स्नेक बाइट में युवा एक विशेष प्रजाति के सांप से अपनी जीभ पर डंक मरवाते हैं और नशे में झूमने लगते हैं। इसके अलावा कुछ लोग छिपकली को सूखा कर उसका पाउडर बना कर तंबाकू के रूप में प्रयोग करते हैं।
म्याऊं-म्याऊं है रिक्रिएशनल ड्रग- डॉ. सुनीला राठी
स्टेट ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर रोहतक के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनीला राठी का कहना है कि नशे का नया ट्रेंड युवाओं में अधिक देखने को मिल रहा है। म्याऊं-म्याऊं विदेश से आने वाला एक रिक्रिएशनल ड्रग है। इसे लेने के बाद व्यक्ति सोशल हो जाता है और उसका फ्रेंडली बिहेवियर हो जाता है। वह लंबे समय तक इंज्वाय करता है।
स्नेक बाइट के नशे में युवा अपनी जीभ के साइड में डंक मरवाते हैं, इसके लिए 1000 से 2000 रुपये कीमत दी जाती है। इससे व्यक्ति को पूरा दिन नशा रहता है। छिपकली का नशा नार्मल है। इसका नशा करने वाले छिपकली को मार कर नमक व हल्दी लगा कर सुखा लेते हैं। इसके बाद इसके पाउडर को बीड़ी सिगरेट में तंबाकू के रूप में इस्तेमाल करते हैं। हैरानी की बात है कि इस प्रकार के नशे में लड़कियां भी शामिल हैं, समस्या होने पर वह अपनी प्राइवेसी के लिए निजी नशा मुक्ति केंद्र में उपचार के लिए जाती हैं।
कम उम्र के युवाओं में पॉपुलर है म्याऊं-म्याऊं
म्याऊं-म्याऊं 20 से 22 साल के नौजवानों में अधिक पसंद किया जाता है। यह 200 रुपये प्रति ग्राम की कीमत पर मिल जाता है और एक बार में दो ग्राम से ज्यादा नहीं लिया जाता। इसकी कम कीमत भी इसकी लोकप्रियता को बढ़ा रही है। यह टैबलेट और पाउडर के रूप में मिलता है। इसे निगल कर, इंजेक्शन से या सूंघ कर लिया जाता है। फरवरी से पहले यह नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटैंसेज एक्ट में शामिल नहीं था। मुंबई में इसका प्रचलन बढ़ने पर इसे प्रतिबंधित किया गया था।