सुप्रीम न्यायालय के न्यायमूर्ति शरद अरविन्द बोबड़े और जस्टिस एल नागेश्वर राव की युगलपीठ ने बुधवार को एक जरूरी आदेश में मध्य प्रदेश हाई न्यायालय द्वारा निरस्त किए गए 63 एमबीबीएस दाखिलों को बहाल कर दिया. मामला मॉप अप राउंड काउंसिलिंग टकराव से संबंधित था.
मामले की सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता प्रभावित विद्यार्थियों की ओर से सुप्रीम न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा और जबलपुर के एडवोकेट सिद्घार्थ राधेलाल गुप्ता ने पक्ष रखा.उन्होंने दलील दी कि मॉप अप राउंड की काउंसिलिंग में एमबीबीएस सीटों पर दाखिला पाने वाले विद्यार्थियों को गैर मूल निवासी करार देकर बाहर का रास्ता तो दिखा दिया गया, लेकिन ऐसा करने से पूर्व सुनवाई का मौका नहीं दिया गया. सीधे तौर पर एकपक्षीय कार्रवाई की गई है. इसके बाद सुप्रीम न्यायालय ने 63 एमबीबीएस विद्यार्थियों के एडमिशन निरस्त किए जाने संबंधी मध्य प्रदेश हाई न्यायालय का 23 मार्च 2018 का आदेश पलट दिया. सुप्रीम न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी बोला कि राज्य गवर्नमेंट को मॉप अप राउंड की काउंसिलिंग में गड़बड़ी की जांच करानी चाहिए.इसमें जो भी दोषी पाए जाएं उनके विरूद्ध कार्रवाई होनी चाहिए.
यह था हाई न्यायालय का आदेश
मध्य प्रदेश हाई न्यायालय के न्यायमूर्ति आरएस झा और जस्टिस राजीव कुमार दुबे की युगलपीठ ने 23 मार्च को तल्ख टिप्पणी करते हुए बोला था कि राज्य शासन मूक दर्शक बना रहा व प्रदेश के व्यक्तिगत मेडिकल कॉलेजों ने मनमानी करते हुए 63 गैर मूल निवासी आवेदकों को एमबीबीएस सीटें आवंटित कर दीं. लिहाजा, मॉप अप राउंड के 63 दाखिलों को गैरकानूनी पाते हुए कैंसल किया जाता है. शासकीय और व्यक्तिगत मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश संबंधी नियम स्वयं गवर्नमेंट ने अधिसूचित किए थे, इसके बावजूद उनका समुचित पालन सुनिश्चित कराने की दिशा में कुंभकर्णी निद्रा का रवैया अपना लिया गया. जिसका पूरा लाभ व्यक्तिगत मेडिकल कॉलेजों ने उठाया व अपनी मनमर्जी से मध्यप्रदेश के मूल निवासियों का हक मारकर दूसरे राज्यों के आवेदकों को एमबीबीएस सीटों पर प्रवेश दे दिया. चूंकि मूल निवासी व मेरिट दोनों की अनदेखी करके प्रवेश दिए गए हैं, अत: ऐसे 63 दाखिले निरस्त किए जाने के अतिरिक्त व कोई विकल्प शेष ही नहीं है.